آٹھواں عجوبہ

Shayari By

یہ ان دنوں کی بات ہے جب میں چھٹی کلاس میں تھا اس سال اسکول شروع ہوا تو ہماری کلاس میں ایک نئے لڑکے کا داخلہ ہوا۔ نام تھا اسکا جنید۔ مجھے میرے دوست عامر نے بتایا کہ جنید کے والد ڈبلیو سی ایل میں ملازم ہیں اور ابھی ابھی ان کا بھوپال سے یہاں ٹرانسفر ہوا ہے۔
جنید بہت ہی دبلا پتلا تھا۔ لگتا تھا ذرا پھونک ماریں گے تو اڑ جائے گا۔ رنگ سانولا، آنکھیں نیپالی لوگوں جیسی چھوٹی چھوٹی سی، بال گھنگرالے، پتہ نہیں کیوں پہلی مرتبہ اسے دیکھ کر مجھے لگا جیسے میں کسی چوہے کو دیکھ رہا ہوں۔ وہ تمام طلباء سے ذرا الگ قسم کا تھا۔ اسکے دبلے پن کے باوجود ایسا محسوس نہیں ہوتا تھا کہ وہ کمزور ہے۔ کسی حد تک گٹھا ہوا بدن، چوہے جیسی چستی پھرتی اس میں تھی۔ ایک تو وہ اجنبی اور حلیہ سب سے جدا لڑکوں نے اسے آڑے ہاتھوں لیا اور ستانا شروع کر دیا۔

پہلے ہی دن جب وہ سیڑھوں کے پاس کھڑا تھا میری کلاس کے سارے لڑکے جو وہاں سے گزر رہے تھے، جاتے جاتے اس کے سر پر ٹپّو مارتے جارہے تھے۔ دوسرے دن چھٹی کے دوران وہ باہر نکلا تو اس کی پیٹھ پر کاغذ کا پرزہ چپکا ہوا تھا جس پر لکھا تھا ’نیپالی چوہا‘۔
سبھی جانتے تھے کہ یہ حرکت اسامہ کی تھی۔ اسامہ ہماری کلاس کا سب سے زیادہ شریر بلکہ خطرناک طالب علم تھا۔ پوری کلاس پر اپنی دھاک جمائے ہوئے تھا۔ جہاں کسی نے اس کی مرضی کے خلاف کوئی کام کیا تو وہ اس کا دشمن بن جاتا تھا۔ ہم سب گھبرا گئے کہ اب اس نے نہ جانے کیوں جنید کو اپنا نشانہ بنالیا تھا۔ شاید نیا طالب علم دیکھ کر اسے نئی شرارت سوجھی تھی۔ اسامہ خوب موٹا تازہ تھا اسے دیکھ کر ایسا لگتا تھا جیسے کسی نے بڑے سے تکئے میں خوب ٹھونس ٹھونس کر روئی بھر دی ہو۔ البتہ وقت پڑے تو تیزی سے بھا گنا اس کے بس کی بات نہ تھی۔ سومو پہلوانوں جیسا دکھائی دیتا تھا۔ طاقت تو کچھ زیادہ نہ تھی بسں اپنے موٹاپے اور شرارتوں کے بل پر سب کو ڈراتا رہتا تھا۔ [...]

दादी अम्मां की कहानी

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दादी अम्मां सोने से पहले सब बच्चों को कहानी सुनाया करती थीं। हमारे घर में उनकी कहानी सुनने के लिए मुहल्ले के दूसरे बच्चे भी आ जाते। हर-रोज़ रात को हम उनसे कहानी सुनते। उनकी कहानी बहुत मज़े-दार होतीं। हम उन्हें मज़े ले-ले कर सुनते। आख़िर में दादी अम्मां कहानी ख़त्म कर के सबको दुआएं देतीं।
इस रात भी सब बच्चे उनके गिर्द जमा थे। दादी अम्मां ने कहानी इस तरह शुरू की।

नन्हे-मुन्ने फूल जैसे नाज़ुक बचोगे कहानियाँ तो तुमने ना जाने कितनी सुनी होंगी। उनमें जिन्नों, देवओं, भूतों परियों, बादशाहों और शहज़ादों, सभी किस्म की कहानियाँ तुमने सुनी होंगी, लेकिन आज मैं जो कहानी सुनाने वाली हूँ, वो ना किसी जिन्न देव की है, ना बादशाह या शहज़ादे की, बल्कि आज की कहानी एक औरत और उसके बेटे की है।
‘‘भला ये क्या कहानी हो सकती है दादी अम्मां!’’ एक बच्चे ने हैरान हो कर कहा। दादी अम्मां मुस्कुराईं और फिर कहने लगीं। [...]

अक़्ल-मंद बूढ़िया

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दो चोर एक घर में घुसे। आधी रात का वक़्त था। घर में मिट्टी के तेल का दिया जल रहा था। वो घर एक बूढ़िया का था जिसका इस दुनिया में कोई भी अज़ीज़ रिश्तेदार नहीं था। वो अकेली थी और कमाने के क़ाबिल भी नहीं थी। महल्ले के लोग सुब्ह शाम उस को खाना दे जाया करते थे। वो इस में से खाती और ख़ुदा का शुक्र अदा करके इबादत में मसरूफ़ हो जाती।
इस दिन भी वो इशा की नमाज़ पढ़ने के बाद काफ़ी देर तक अल्लाह अल्लाह करने के बाद सोई थी कि घर में दो चोर घुस आए। एक चोर का पैर बूढ़िया की चारपाई से जो टकराया तो इस की आँख खुल गई।

उसने दोनों चोरों को देख लिया लेकिन बेफ़िक्र हो कर लेटी रही। उसे फ़िक्र होता भी क्यों, घर में था ही क्या जिसके चोरी चले जाने का डर होता। दिल ही दिल में हसंती रही और चोरों को देखती रही। जो इधर उधर नक़दी या ज़ेवर तलाश करते फिर रहे थे। आख़िर जब चोर तलाश करते करते थक गए और मायूस हो कर लौटने लगे तो बूढ़िया बोल उठी।
‘‘क्यों कुछ नहीं मिला’’ [...]

मेरे उस्ताद मेरे मोहसिन

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जब मैं अपने उस्तादों का तसव्वुर करता हूँ तो मेरे ज़ह्न के पर्दे पर कुछ ऐसे लोग उभरते हैं जो बहुत दिलचस्प, मेहरबान, पढ़े लिखे और ज़हीन हैं और साथ ही मेरे मोहसिन भी हैं। उनमें से कुछ का ख़्याल कर के मुझे हंसी भी आती है और उन पर प्यार भी आता है। अब मैं बारी-बारी उनका ज़िक्र करूँगा।
जब मैं बाग़ हालार स्कूल (कराची) में के. जी. क्लास में पढ़ता था तो मिस निगहत हमारी उस्तानी थीं। मार-पीट के बजाय बहुत प्यार से पढ़ाती थीं। सफ़ाई-पसंद इतनी थीं कि गंदगी देख कर उन्हें ग़ुस्सा आ जाता था और किसी बच्चे के गंदे कपड़े या बढ़े हुए नाख़ुन देख कर उसकी हल्की-फुल्की पिटाई भी कर देती थीं। मुझे अब तक याद है कि एक दफ़ा मेरे नाख़ुन बढ़े हुए थे और उनमें मैल जमा था। मिस निगहत ने मेरे नाख़ुनों पर पैमाने से (जिसे आप स्केल या फट्टा कहते हैं।) मारा। चोट हल्की थी लेकिन उस दिन मैं बहुत रोया। लेकिन मिस निगहत ने गंदे और बढ़े हुए नाख़ुनों के जो नुक़्सान बताए वो मुझे अब तक याद हैं और अब मैं जब भी अपने बढ़े हुए नाख़ुन देखता हूँ तो मुझे मिस निगहत याद आ जाती हैं और मैं फ़ौरन नाख़ुन काटने बैठ जाता हूँ।

पहली जमात में पहुँचा तो मिस सरदार हमारी उस्तानी थीं, लेकिन वो जल्द ही चली गईं और उनकी जगह मिस नसीम आईं जो उस्तानी कम और जल्लाद ज़्यादा थीं। बच्चों की इस तरह धुनाई करती थीं जैसे धुनिया रूई धुनता है। ऐसी सख़्त मार-पीट करती थीं कि इन्सान को पढ़ाई से, स्कूल से और किताबों से हमेशा के लिए नफ़रत हो जाए। जो उस्ताद और उस्तानियाँ ये तहरीर पढ़ रहे हैं उनसे मैं दरख़्वास्त करता हूँ कि बच्चों को मार-पीट कर न पढ़ाया करें। बहुत ज़रूरी हो तो डाँट-डपट कर लिया करें।
इस तहरीर को पढ़ने वाले जो बच्चे और बच्चियाँ बड़े हो कर उस्ताद और उस्तानियाँ बनें वो भी याद रखें कि मार-पीट से बच्चे पढ़ते नहीं बल्कि पढ़ाई से भागते हैं। बच्चों को ता'लीम से बेज़ार करने में पिटाई का बड़ा हाथ होता है। हाँ कभी-कभार मुँह का ज़ायक़ा बदलने के लिए एक-आध हल्का-फुलका थप्पड़ पड़ जाए तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन अच्छे बच्चों को इसकी कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। [...]

रेशम का कीड़ा

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बच्चो हर मुल्क और हर क़ौम में कुछ कहानियाँ ऐसी मशहूर रहती हैं जो उस मुल्क के वासियों या क़ौम के अफ़राद के ज़हनों में पुश्त-हा-पुश्त से चली आती हैं, साईंस की बढ़ती हुई तरक़्क़ी भी अवाम के ज़ह्न से वो हिकायतें नहीं निकाल सकती।
ऐसी हिकायतों को “लोक कहानी” कहते हैं, आज मैं तुमको वियतनाम की एक लोक कहानी सुनाता हूँ, अब ये लोक कहानी एक अलामत के तौर पर इस्तिमाल होती है।

वाक़िया यूँ बयान किया जाता है कि बहुत ज़माने पहले वियतनाम में एक जज़बाती लड़की थी, बचपन ही में उसकी माँ मर चुकी थी, उसकी परवरिश महल्ले की एक बूढ़ी औरत कर रही थी। उसका बाप ताजिर था। इसलिए ज़्यादा-तर घर से बाहर ही रहता था। माँ के मर जाने और बाप के साथ न रहने की वजह से वो कुछ बे-पर्वा, अल्हड़ और शोख़ हो गई थी। उसका बाप साल भर में सिर्फ़ चंद दिनों के लिए मौसम-ए-बहार में घर आता था। उसकी लड़की अब कुछ होश-गोश की हो गई थी और दिन-भर कपड़े बुनती रहती थी, शाम को वो दरिया की लहरों पर ख़ाली-अल-ज़ह्न हो कर निगाह डाला करती थी।
एक रोज़ जब वो मकान के दरवाज़े पर खड़ी हुई थी तो उसे बाग़ में पत्ते खड़कने की आवाज़ आई, उसने देखा कि उसके बाप का सफ़ेद घोड़ा अस्तबल से निकल आया है, घोड़े को देख कर लड़की को बाप की याद आ गई, घोड़े के पास पहुँच कर यूँ ही बे-पर्वाई से बोली कि “अगर तुम मेरे वालिद को ढूँढ कर उन्हें मेरे पास ले आओगे तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी।” [...]

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