बच्चो हर मुल्क और हर क़ौम में कुछ कहानियाँ ऐसी मशहूर रहती हैं जो उस मुल्क के वासियों या क़ौम के अफ़राद के ज़हनों में पुश्त-हा-पुश्त से चली आती हैं, साईंस की बढ़ती हुई तरक़्क़ी भी अवाम के ज़ह्न से वो हिकायतें नहीं निकाल सकती। ऐसी हिकायतों को “लोक कहानी” कहते हैं, आज मैं तुमको वियतनाम की एक लोक कहानी सुनाता हूँ, अब ये लोक कहानी एक अलामत के तौर पर इस्तिमाल होती है। वाक़िया यूँ बयान किया जाता है कि बहुत ज़माने पहले वियतनाम में एक जज़बाती लड़की थी, बचपन ही में उसकी माँ मर चुकी थी, उसकी परवरिश महल्ले की एक बूढ़ी औरत कर रही थी। उसका बाप ताजिर था। इसलिए ज़्यादा-तर घर से बाहर ही रहता था। माँ के मर जाने और बाप के साथ न रहने की वजह से वो कुछ बे-पर्वा, अल्हड़ और शोख़ हो गई थी। उसका बाप साल भर में सिर्फ़ चंद दिनों के लिए मौसम-ए-बहार में घर आता था। उसकी लड़की अब कुछ होश-गोश की हो गई थी और दिन-भर कपड़े बुनती रहती थी, शाम को वो दरिया की लहरों पर ख़ाली-अल-ज़ह्न हो कर निगाह डाला करती थी। एक रोज़ जब वो मकान के दरवाज़े पर खड़ी हुई थी तो उसे बाग़ में पत्ते खड़कने की आवाज़ आई, उसने देखा कि उसके बाप का सफ़ेद घोड़ा अस्तबल से निकल आया है, घोड़े को देख कर लड़की को बाप की याद आ गई, घोड़े के पास पहुँच कर यूँ ही बे-पर्वाई से बोली कि “अगर तुम मेरे वालिद को ढूँढ कर उन्हें मेरे पास ले आओगे तो मैं तुमसे शादी कर लूँगी।”
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